उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

मुनाफाखोरी के चलते उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और उनके जीवन के साथ खिलवाड़ किया जाता है। मुनाफाखोरों पर लगाम लगाने और उपभोक्ताओं के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करने के लिए यह अधिनियम बनाया गया था। जिसमें समय- समय पर संशोधन करते हुए इसकी शक्तियों को बढ़ाया गया है।

उपभोक्ता के अधिकार

  1. सुरक्षा का अधिकार
  2. सूचना पाने का अधिकार
  3. चुनाव का अधिकार
  4. सुनवाई का अधिकार
  5. उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार
  6. क्षति -पूर्ति का अधिकार

इस अधिनियम के तहत उपभोक्ता न्यायालय का गठन किया गया है।

उपभोक्ता संरक्षण नियम के अंतर्गत स्थापित न्याय प्रणाली

-जिला आयोग
यहां 20 लाख तक के मुआवज़े से सम्बंधित सुनवाई होती है।

  • राज्य आयोग
    20 लाख से 1 करोड़ तक के मुआवज़े की सुनवाई होती है।

-राष्ट्रीय आयोग
1 करोड़ से ऊपर के मुआवज़े की सुनवाई

-सुप्रीम कोर्ट
किसी भी मामले की आखिरी सुनवाई होती है।

यह उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में बनाए गए प्रावधानों के बारे में बताता है। इसकी तुलना में 2019 का नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में क्या बदलाव हुए हैं वे नीचे विस्तारपूर्वक दिए गए हैं।

नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019

इस अधिनियम में किए गए बदलाव न केवल इस अधिनियम को सशक्त बनाते हैं बल्कि देशभर में उपभोक्ता अदालतों में काफी समय से लंबित पड़ी उपभोक्ताओं की शिकायतों को तीव्रता से हल करने के साथ उपभोक्ताओं के अधिकारों को और मजबूत बनाने में यह अधिनियम कारगर सिद्ध होगा।

इस अधिनियम में भ्रामक विज्ञापन से लेकर ई-कॉमर्स ( ऑनलाइन शॉपिंग ) से सम्बंधित बहुत से नियमों को लागू किया गया है।

  1. 2019 के तहत नए -ई कॉमर्स नियमों को लागू किया गया। जिसके अनुसार अब ई-कॉमर्स यानी कि जो उपभोक्ता ऑनलाइन शॉपिंग व कोई सेवा या कोई वस्तु की खरीद करते हैं,तो ऐसी सभी ई- कॉमर्स संस्थाओं को उभोक्ताओं को रिटर्न ,रिफंड से लेकर हर छोटी बड़ी जानकारी अपने उपभोक्ताओं को देनी अनिवार्य है।
  • यदि कोई उभोक्ता शिकायत करता है ,तो 48 घण्टे के भीतर उसकी शिकायत सुनी जानी चाहिए साथ ही शिकायत दर्ज होने के एक महीने के भीतर तक उस शिकायत का निवारण करना अनिवार्य है।
  1. भ्रामक विज्ञापनों के प्रचार प्रसार पर रोक
  • ऐसे सभी विज्ञापन जो भ्रामक हो ,वस्तुओं या सेवाओं के बारे में गलत प्रचार करते हुए या झूठे दावे करते हुए पकड़े जाते है तो ऐसे सभी सेलेब्रिटीज़ को भी दंड दिया जाएगा।

-झूठे विज्ञापन के लिए 10 लाख रुपए तक का जुर्माना।

  • अगर ऐसा दुबारा करते हुए पाया जाता है तो जुर्माना 50 लाख तक बढ़ सकता है।
  • दो वर्ष तक की कैद की सजा और यदि फिर से ऐसा अपराध करते हुए पाया गया तो सजा पांच वर्ष बढ़ सकती है।
  1. उपभोक्ता अपनी शिकायत किसी भी कमिशन में दर्ज करवा सकते हैं।

4.मिलावट के मामले में 6 महीने की सजा का प्रावधान है यदि मिलावट के चलते किसी उपभोक्ता की मौत हो जाती है तो उम्रकैद की सज़ा होगी।

  1. वस्तुओं के तय मूल्य एम आर पी से अधिक मूल्य पर दुकानदार सामान नहीं बेच सकता। यदि ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाई होगी।
  2. ग्राहक मध्यस्थता सेल का गठन किया गया।
    -इसमें दोनों पक्षों में आपसी समझ के द्वारा विवादों का सुलझाया जाता है।
  3. केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण के गठन

Central Consumer Protection Authority ( CCPA) भ्रामक विज्ञापनों को रोकना, दोषपूर्ण वस्तुओं की जांच करना और कानूनी कार्रवाई करना।

  • उभोक्ताओं के मामलों उनके अधिकारों की रक्षा के लिए ,उनकी समास्याओं को सुलझाने के लिए इसका गठन किया गया है।
  1. उपभोक्ता विवाद निवारण कमीशन ( CDRCs) का गठन –

जिला ,राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता निवारण आयोग बनाया गया है।

निम्नलिखित विषयों से सम्बंधित शिकायतें इस गठन में दर्ज कराई जाती है।

-कोई दुकानदार यदि वस्तु के वास्तविक मूल्य से अधिक मूल्य की लेता है।

  • कोई वस्तु दोषपूर्ण हो या कोई कमी हो।
  • स्वास्थ्य के लिए हानिकारक या जोखिमपूर्ण सेवाओं वस्तुओं की रोक के लिए व इससे सम्बंधित उन मामलों की शिकायतों को दर्ज करा सकते हैं।

-उपभोक्ता निवारण मंच में 1 करोड़ की राशि से सम्बंधित मुआवजों के लिए सुनवाई होगी।

-राज्य उपभोक्ता निवारण मंच में 1 करोड़ से 10 करोड़ तक के मामलों की सुनवाई।

  • राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता निवारण मंच में 10 करोड़ व इससे अधिक राशि की सुनवाई होगी।

किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता ( सिविल और क्रिमिनल लॉ से सम्बंधित जानकारी ) के लिए Legal Aid से सम्पर्क करें।

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