–महत्वपूर्ण जानकारी —
—कानून क्या है ।
—कितनी बार संशोधन हुआ है।
—संशोधन की आवश्यकता व महत्त्व ।
—राष्ट्रिय जांच एजेंसी की बढ़ेगी शक्तियाँ ।
—विधेयक (कानून ) के दुरुपयोग की सम्भावनाएं व चिंताएं ।
13 जुलाई को राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने गैर कानूनी गतिविधियों (रोकथाम) विधेयक 1967 के तहत केरल में गोल्ड (सोने ) कांड के मामले में कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करी है। जिसमे से आरोपी स्वप्ना ,सुरेश ,संदीप नायर को 8 दिन की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) हिरासत में भेज दिया गया है।
ये अधिकार NIA को कैसे प्राप्त हुए, आप सोच रहें होंगे कि यह तो मात्र सोने का कांड है तो उसमें पुलिस ने उन्हें हिरासत में क्यों नहीं लिया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने क्यों ? इस बारे में संक्षिप्त में विस्तृत जानकारी नीचे दी गई है।
गैर कानूनी गतिविधियां ( रोकथाम ) विधेयक(कानून ) 1967 क्या है:-
(Unlawful activities (prevention) amendment bill 1967)
- यह कानून देश में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली सभी क्रियाओं, गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था। जिससे इस देश की एकता, अखण्डता, पर कभी आंच न आए।
- किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा क्षेत्रीय अखण्डता, देश की एकता को क्षति पहुँचाने वाले या देश विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने वाले व्यक्तियों व ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले, सभी व्यक्तियों पर गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) ( UAPA) अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी।
- यह कानून अनुच्छेद 19 पर अप्रत्यक्षरूप से रोक लगाता है। किसी भी लोकतंत्र की नींव उसके नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पूर्ण आज़ादी पर टिकी होती है।
अनुच्छेद -19 जिसे स्वातंत्र्य अधिकार कहा जाता है। जिसमें देश के सभी नागरिकों को बोलने और अपनी बात रखने अधिकार व भाषण की आजादी होती है |
शान्तिपूर्ण तरीके से व बिना किसी हिंसात्मक क्रियाओं के किसी स्थान पर एकत्र होकर अपनी बात रखने, किसी भी चीज़ का विरोध करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है ।
- संघ बनाने की आज़ादी, भारत के किसी भी राज्यक्षेत्र में रहने या वहाँ बसने की स्वतंत्रता ,एक स्थान से दूसरे स्थान पर संदेश भेजने और प्राप्त करने की आजादी।
- यह कानून अनुच्छेद 19 की आजादी पर रोक लगता है। यदि किसी व्यक्ति या संघ का प्रदर्शन देश विरोधी या देश की अंखडता के विरोध में हुआ तो उसपर कानूनी कार्रवाई होगी। इसमें समस्यां यह है कि आतंकवाद की परिभाषा निर्धारित नहीं है। अपने हितों की आवाज़ उठाने वालों को भी आतंकी बताया जा सकता है।
- 1967 से लेकर अभी तक इस कानून में चार बार संशोधन किया जा चुका है। 2004 में ,2008 ,2012,2019 में इन सभी संशोधन में बहुत से सेक्शनों को जोड़ा गया है जैसे 17, 18 ,23 ,24 आदि जिसमें से अधिकतर व्यक्तिगत स्वतंत्रता से सम्बंधित है।
गैर कानूनी गतिविधियां ( रोकथाम) संशोधन कानून 2019 ( UAPA)
- 2019 में इस कानून में संशोधन करके इस बिल को पास कर दिया था । इस कानून किए गए संशोधन इस प्रकार से हैं:-
इस विधेयक को आम लोगों के विरोध में प्रयोग नहीं किया जा सकता जब तक की किसी व्यक्ति के आंतकवादी गतिविधियों में शामिल होने के सबूत नहीं मिल जाते। कहने का अर्थ जो व्यक्ति देश विरोधी नारे लगाते, देश की अखंडता को तोड़ने का प्रयास करते हैं,युवाओं को हिंसा के लिए भड़काते है, देश को तोड़ने की बात करते हैं, या किसी भी तरीके से आतंकवाद को पोषित करने के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष धन मुहैया कराते हैं और शहरी माओवादियों पर कठोर कार्रवाई करने का प्रवाधान है।
- उक्त( ऊपर बताई गई) गतिविधियों से यदि कोई आतंकवादी घोषित होता है तो उसे हिरासत में लेकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी को तत्काल जांच करने व कार्रवाई करने का पूर्ण अधिकार ।
- पर्याप्त सबूतों के आधार पर ही किसी को आतँकवादी घोषित किया जा सकता है।
इस कानून के तहत राष्ट्रीय जांच एजेंसी की शक्तियां बढ़ी
- आतंकवाद में संलग्न व्यक्ति की आय या सम्पति आतंकवादी गतिविधियों से अर्जित की गई हैं , ऐसी सम्पति को ज़ब्त करने का अधिकार राष्ट्रीय जांच एजेंसी महानिदेशक को है।
- न्यायिक प्रकिया का पालन किए बगेर , सबूतों के आधार दोषी घोषित करने व कठोर कार्रवाई ,हिरासत में लेने और जांच करने का अधिकार NIA को है।
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इस कानून से एआईएन को असीमित अधिकार प्राप्त हुए ।
आतंकवाद से जुड़े व्यक्ति की सम्पत्ति ज़ब्त करने के लिए बस एआईएन के महानिदेशक से आज्ञा लेनी होती है। इससे पूर्व पुलिस महानिदेशक से लेनी होती थी।
संशोधन की आवश्यकता व महत्त्व :-
- अभी तक इस कानून में एक व्यक्ति को आतंकवादी कहने का प्रावधान नहीं था लेकिन 2019 के संशोधन के बाद अब व्यक्तिगत आतंकवादी का प्रावधान आया है। यह संशोधन होने से पूर्व आतंकवादी संग़ठनो का तो अंत हो जाता था लेकिन आतंकवाद का नहीं।
- UAPA 1967 कानून आतंकवाद के संगठनो पर तो रोक लगाने में सक्षम रहा लेकिन व्यक्तिगत आतंकवाद पर नहीं जो अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं।जिससे होता यह था कि संग़ठन खत्म करने के बाद उसमें मौजूद व अन्य व्यक्ति एक नया संग़ठन बना लेते थे।
जैसे कि कोई व्यक्ति जो आतंकवाद को पोषित करने के लिए धन मुहैया कराता है। युवाओं को उकसाता है। उनमें देश विरोधी भावना जागृत करता है या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद को पोषित करता है। इन अप्रत्यक्ष या प्रयत्क्ष लोगों को “व्यक्तिगत आतंकवादी” की श्रेणी में रखना जरूरी था क्योंकि ऐसा न करने पर आतंकवादी रूपी पेड़ तो खत्म हो जाता लेकिन उसकी जड़ें फिर पनपने लगती। आतंकवाद को पूरी तरह से सम्पात करने के लिए उसकी जड़ों को भी उखाड़ फेंकने की आवश्यकता थी।
कानून के दुरुपयोग की सम्भावनाएँ व चिंताएं
इस कानून में हुए संशोधन के चलते बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया का पालन करते हुए उस व्यक्ति को आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। जिसके आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने सबूत मिल जाते हैं । यदि न भी मिले तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी अपने अनुसार आतंकवाद की मनमानी व्यख्या कर सकती और निर्दोषी को दोषी बता सकती है। ऐसा दो स्थिति में सम्भव है जब व्यक्ति विशेष से किसी को बदलना निकालना हो या सरकार की आलोचना करने वाले व्यक्तियों से सरकार को बदलना लेना हो,ताकि सरकारी की मनमानी चलती रहे ,जनता बिना विरोध करे उनके थोपे गए कानून को सहती रहे या फिर किसी भी बदलाव के लिए आवाज उठाने वाले ऐसे सभी व्यक्ति से सरकार बदला निकालने के लिए इस कानून का प्रयोग कर सकती है।
- मौजूदा समय में जो भी सरकार होगी। वह विपक्ष की सरकार से बदला निकालने के लिए भी इस कानून का दुरुपयोग कर सकती है। सरकार व राष्ट्रीय जांच एजेंसी व्यक्तिगत आतंकवादी, व आतंकवाद की मनमानी व्याख्या से सबूत पेश करके, उस पर कार्रवाई कर सकते हैं।
1 comments On गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून 1967 (UAPA)
Wow very beautifully you have explained it