उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह को हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता देने की गुहार लगाई

उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह को हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता देने की गुहार लगाई

दिल्ली उच्च न्यायालय में शनिवार को सार्वजनिक हित वाली याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने देश में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाकर समानता और सम्मान का अधिकार तो दे दिया लेकिन हिन्दू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत अभी भी समान विवाह की अनुमति नहीं है।

याचिका के माध्यम से हाई कोर्ट में आग्रह करते हुए कहा गया कि ,क्योंकि 1956 के हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 में समलैंगिक और विषमलैंगिक जोड़ें के बीच अंतर नहीं है इसलिए समान लिंग वाले जोड़ों को विवाह करने के अधिकार के तहत मान्यता दी जानी चाहिए।

दायर याचिका में क्या कहा गया :-

वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया है की

  • याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान में मौजूद मौलिक अधिकारों के तहत याचिका दायर की है।

*अभी भी कानून समलैंगिक ( LGBT) समुदाय के सदस्यों को केवल व्यक्तियों के रूप में देखता है न कि जोड़ों के रूप में।

  • समलैंगिक समुदाय अभी भी अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर है।
  • याचिका में विशेष रूप से उठाया गया मुद्दा :-
  • समलैंगिक समुदायों को शादी करने का विकल्प देने से इनकार करना बेहद ही भेदभावपूर्ण है।यह उन्हें दूसरे दर्जे के नागरिक मानते हैं। जो लाभ ,मान्यता ,सुविधाएं ,फायदें विषमलिंगी जोड़ों को शादी करने पर प्राप्त होते हैं वो समलैंगिक जोड़ों को भी प्राप्त होने चाहिए। उनके साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम 1956 की धारा 5 का हवाला दिया
  • याचिका में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 5 का हवाला देते हुए कहा गया कि इस धारा के अंतर्गत कहीं भी यह बात नहीं लिखी है कि समलैंगिक जोड़े विवाह नहीं कर सकते।इस धारा में कहा गया कि ” विवाह -किसी भी दो हिंदुओं के बीच सम्पन्न किया जा सकता है।
  • दलील में यह भी कहा गया कि देश से लेकर दिल्ली तक कहीं भी समलैंगिक विवाह को हिन्दू विवाह अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत नहीं किया जा रहा । इससे वह जोड़ें अन्य लाभों से भी वंचित हो जाते हैं।
  • समलैंगिक और ट्रांसजेंडर ,देश की आबादी के लगभग पांच से दस प्रतिशत है। ऐसे में उन्हें भी वो लाभ मिलने चाहिए जो अन्य लिंग के वैवाहिक जोड़ों को मिलते हैं।
  • विवाह का अधिकार” सार्वभौमिक अधिकार है। राइट टू मैरिज को एक परिवार शुरू करने के अधिकार के अर्थ के भीतर मनावाधिकार चार्टर के तहत भी कहा गया है। “
  • इसमें मौलिक अधिकार, समानता के अधिकार का उल्लंघन व भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत विवाह का अधिकार जीवन का अधिकार है आदि का हवाला देते हुए अपनी समस्याओं को रखा।

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